एक से निपटूं, दूसरा चला आता है
उनका ख़्याल हर ख़्याल के बाद आता है
उनसे जुदा होना तो अब मुमकिन नहीं
और वो मिल जाएँ, यकीन नहीं आता है
उलझा रहता हूँ यूँही मसरूफ़ियत में
उनको जो ना देखूं, तो क़रार आता है
उनके बिन जीना, जीना है या मृगतृष्णा
सब सहरा है, पर पानी नज़र आता है
निचोड़ के पी ले इसे, आखिरी बूँद तक
चंद-रोज़ा जीवन में, खुशदिन कम आता है
मौत से सुहानी बज़्म, देखी नहीं कहीं
यूँ ना आए, मय्यत पे हर एक आता है
कश्ती का रिश्ता उछलती मौजों से है
तूफां नहीं, साहिल ग़ैर नज़र आता है
थक के मत बैठ, ना ही रोक अपनी तदबीरें
भले लम्बी हो रात, दिन ज़रूर आता है
मिलना सभी से मुस्कुरा कर “मुख़्तसर”
आज बिछड़ने पर, कल वापस कौन आता है